-योगेश कुमार गोयल-
अमेरिकी युवाओं में ई-सिगरेट (इलैक्ट्रॉनिक सिगरेट) की बढ़ती लत का हवाला देते हुए गत 18 सितम्बर को केन्द्र सरकार द्वारा धूम्रपान नहीं करने वालों में निकोटीन की लत बढ़ने को ध्यान में रखते हुए ई-सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का जो फैसला लिया गया है, जन-स्वास्थ्य के दृष्टिगत वह स्वागत योग्य है। अमेरिका में ई-सिगरेट का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है और इसके सेवन से सात लोगों की मौत होने की बात सामने आई थी। सरकार द्वारा अब एकाएक ई-सिगरेट पर पाबंदी लगाने का जो फैसला लिया गया है, वह अमेरिकी रिसर्च के अलावा कुछ भारतीय संस्थानों द्वारा की गई रिसर्च पर भी आधारित है। देश के शीर्ष मेडिकल रिसर्च निकाय ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’, एम्स, टाटा रिसर्च सेंटर तथा राजीव गांधी कैंसर अस्पताल द्वारा भी इस पर प्रतिबंध की अनुशंसा की गई थी। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भी सभी राज्यों को ईएनडीएस (इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम्स) पर प्रतिबंध लगाने के लिए लिखा था। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा ई-सिगरेट को लेकर मई माह में एक श्वेत पत्र जारी कर इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई थी।
अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार वहां 10वीं तथा 12वीं के स्कूली बच्चों में ई-सिगरेट का चलन 77.8 प्रतिशत तक बढ़ा है जबकि मिडल स्कूल के बच्चों में ई-सिगरेट लेने का चलन 48.5 प्रतिशत बढ़ा है। भारत में ई-सिगरेट के उत्पादन, बिक्री, परिवहन, आयात, निर्यात, जमा करने और यहां तक कि वितरण पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब ई-सिगरेट का कारोबार करने वाले व्यक्ति को पहली बार एक वर्ष की सजा तथा एक लाख का जुर्माना हो सकता है लेकिन दूसरी बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष तक की सजा व पांच लाख रुपये जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। भण्डारण के लिए ई-सिगरेट रखने पर भी छह माह की जेल और 50 हजार रुपये तक का जुर्माना संभव हैं। हालांकि देशभर में 16 राज्य ई-सिगरेट पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुके थे लेकिन ई-सिगरेट के कारोबार में कोई कमी देखने में नहीं आई। देशभर में इस पर सख्त प्रतिबंध लागू किए जाने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि स्वास्थ्य खतरों का सबब बनती ई-सिगरेट पर पाबंदी से लोगों को इसके खतरों से बचाने में मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि ई-सिगरेट की शुरूआत आम सिगरेट की लत छुड़ाने के नाम पर हुई थी लेकिन विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों में भी यह खासकर युवाओं और बच्चों में जिस प्रकार एक नई महामारी में बदलती दिख रही थी, उसके मद्देनजर बच्चों को इसके खतरे से बचाने के लिए भारत में इस पर प्रतिबंध लगाया जाना समय की बहुत बड़ी मांग भी थी। बच्चों व नाबालिगों को आकर्षित करने के लिए ई-सिगरेट निर्माता कम्पनियों द्वारा अलग-अलग फ्लेवर के साथ ही कैंडी के रूप में भी ई-सिगरेट को बाजारों में उतारा जा चुका है, जिससे प्रभावित होकर छोटी कक्षाओं के बच्चे भी कैंडी की शक्ल में ई-सिगरेट पकड़ना शुरू कर देते हैं, जो बाद में आम सिगरेट भी पीने लगते हैं। एक अध्ययन में कुछ समय पूर्व यह खुलासा हुआ था कि स्कूली बच्चे 16-17 साल की उम्र में ही सिगरेट के आदी हो जा रहे हैं और इन बच्चों में बड़ी संख्या ऐसी है, जिन्हें 18 साल का होते-होते ई सिगरेट की लत लग जाती है। यही नहीं, 10-11 साल के बच्चे भी हुक्के की भांति ई-सिगरेट का सेवन करने लगे थे। दरअसल युवा पीढ़ी और बच्चे इसे स्टेटस सिंबल के रूप में अपनाने लगे हैं और यही कारण है कि देश में ई-सिगरेट का वैध-अवैध कारोबार बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है कि सवाल कम या ज्यादा नुकसान का नहीं है बल्कि इससे लोगों में एक नई लत पड़ रही है, जिसे समय पर रोकना जरूरी है और युवाओं के स्वास्थ्य को लेकर कोई जोखिम नहीं लिया जा सकता।
आंकड़ों पर नजर डालें तो देशभर में करीब 460 ई-सिगरेट कम्पनियां सक्रिय हैं, जिनके सात हजार से भी ज्यादा फ्लेवर्ड उत्पाद बाजारों में बिक रहे हैं। ई-सिगरेट पर प्रतिबंध के बाद करीब 800 करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित होगा। अकेले दिल्ली में ही इसका करीब 120 करोड़ रुपये का कारोबार है। हालांकि इसके अवैध कारोबार की बात करें तो यह इससे कई गुना ज्यादा है और इसे संगठित अपराध की तरह चल रहे कारोबार की संज्ञा भी दी जाती रही है। इसका कारोबार मॉल, फ्लाईओवर के नीचे, पान की दुकानों में, छोटे बाजारों में अर्थात् हर जगह देखा जा रहा है। चीन, जापान, कोरिया तथा दुबई से ई-सिगरेट बड़ी तादाद में सीधे आयात होती रही हैं। ई-सिगरेट पर फैसला लेने के लिए बनी मंत्री समूह की अध्यक्ष तथा वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि देश में ई-सिगरेट के कई ब्रांड मौजूद हैं लेकिन वे सभी विदेश में बनते हैं और आयात किए जाते हैं। माना जाता है कि वर्ष 2003 में एक चीनी फार्मासिस्ट होन लिक द्वारा ई-सिगरेट का आविष्कार किया गया था और उनकी कम्पनी गोल्डन ड्रैगन होल्डिंग्स ने 2005-2006 में विदेशों में इसकी बिक्री शुरू कर दी थी।
भले ही निर्माता कम्पनियों द्वारा ई-सिगरेट को बीड़ी-सिगरेट की लत छुड़ाने के एक भरोसेमंद और सुरक्षित विकल्प के रूप में पेश किया जाता रहा है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन स्पष्ट कर चुका है कि ई-सिगरेट से पारम्परिक सिगरेट जैसा ही नुकसान होता है। संगठन ने इसी साल अपनी रिपोर्ट में चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि सिगरेट उद्योग तम्बाकू विरोधी अंतर्राष्ट्रीय मुहिम को नाकाम बनाने में लगा हुआ है, इसलिए ई-सिगरेट कम्पनियों के प्रचार पर विश्वास न करें। उत्तर-पश्चिमी इंग्लैंड के शोधकर्ताओं ने भी स्प्ष्ट किया था कि जिन किशोरों ने कभी सिगरेट का एक कश भी नहीं लिया था, वे भी अब ई-सिगरेट के साथ प्रयोग कर रहे हैं। इस शोध में 14 से 17 वर्ष आयु वर्ग के 16193 किशोरों को शामिल किया गया था और शोध के मुताबिक पांच में से एक किशोर ने ई-सिगरेट का कश लेने या उसे खरीदने की कोशिश की थी। शोधकर्ताओं का कहना था कि ई-सिगरेट निकोटीन की दुनिया में शराब की तरह ही है, जिस पर सख्ती से नियंत्रण करने की आवश्यकता है। कुछ कैंसर विशेषज्ञ ई-सिगरेट को पैसिव स्मोकिंग का बड़ा उदाहरण मानते रहे हैं, जिनका कहना है कि ई-सिगरेट में निकोटीन आम सिगरेट से कम भले ही हो लेकिन इसमें मौजूद केमिकल कैंसर का कारण बनते हैं। उनका कहना है कि इसी के प्रयोग से एक नॉन स्मोकर को भी फेफड़ों का कैंसर हो सकता है। इंडिया कैंसर रिसर्च कंसोर्टियम के सीईओ प्रो. रवि मेहरोत्रा का कहना है कि ई-सिरगेट खासकर युवाओं में फेफड़ों से संबंधित बीमारियों की बड़ी वजह बन रही है, जो भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक टाइम बम की तरह है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने वाला भारत पहला देश है बल्कि दुनियाभर में अब तक 22 देश इसे प्रतिबंधित कर चुके हैं और इसके नकारात्मक प्रभावों को देखते हुए इस दिशा में कदम आगे बढ़ रहे हैं। अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने वाला अमेरिका का पहला शहर बना था। फिनलैंड में तो जुलाई 2008 से ही निकोटीन युक्त कार्ट्रेज की बिक्री या बिक्री के इरादे से खरीद गैर-कानूनी घोषित है। आस्ट्रेलिया में प्रतिस्थापन उपचार को छोड़कर निकोटीन के सभी रूपों और सिगरेट को जहर के रूप की तरह वर्गीकृत किया गया है। ब्राजील में किसी भी प्रकार के इलैक्ट्रॉनिक सिगरेट की बिक्री, आयात अथवा उनके विज्ञापन निषिद्ध हैं। कनाडा में निकोटीन युक्त इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के आयात, बिक्री और विज्ञापन पर प्रतिबंध है, हालांकि बिना निकोटीन के उत्पाद कानूनी हैं और उनकी बिक्री तथा विज्ञापन की अनुमति है। सिंगापुर में निजी खपत के लिए भी ई-सिगरेट की बिक्री और आयात गैर कानूनी है। यूएस में मिशिगन के बाद न्यूयॉर्क में भी फ्लेवर्ड ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है।
अब जान लेते हैं कि ई-सिगरेट वास्तव में है क्या और यह कैसे स्वास्थ्य पर घातक असर डालती है? ई-सिगरेट को ‘इलैक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम्स’ भी कहा जाता है। यह एक ऐसा वाष्पीकृत बैटरी चालित उपकरण है, जो निकोटीन अथवा गैर-निकोटीन पदार्थों की भाप को सांस के साथ भीतर ले जाती है। ई-सिगरेट एक लंबी ट्यूब जैसी होती है, जिसका बाहरी आकार-प्रकार सिगरेट और सिगार जैसे वास्तविक धूम्रपान उत्पादों जैसा ही बनाया जाता है, जिसमें कोई धुआं या दहन नहीं होता लेकिन सिगरेट, बीड़ी, सिगार जैसे धूम्रपान के लिए प्रयोग किए जाने वाले तम्बाकू उत्पादों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली ई-सिगरेट वास्तव में तम्बाकू जैसा ही स्वाद, अहसास और शारीरिक संवेदना देती है। इसमें निकोटीन तथा अन्य हानिकारक रसायन तरल रूप में भरे जाते हैं। जब ई-सिगरेट में कश लगाया जाता है तो इसमें लगी हीटिंग डिवाइस निकोटीन वाले इस घोल को गर्म करके भाप में बदल देती है, इसी भाप को इनहेल किया जाता है। इसलिए इसे स्मोकिंग के बजाय ‘वेपिंग’ कहा जाता है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने अपने श्वेत पत्र में ई-सिगरेट के तमाम दुष्प्रभावों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया था कि ई-सिगरेट को लेकर युवाओं में भ्रम है कि इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है क्योंकि यह भी स्वास्थ्य के लिए उतनी ही हानिकारक है, जितनी साधारण सिगरेट या अन्य तम्बाकू उत्पाद। श्वेत पत्र में कहा गया था कि ई-सिगरेट व्यक्ति के डीएनए को क्षतिग्रस्त कर सकती है और इसकी वजह से सांस, हृदय व फेफड़े संबंधी तमाम बीमारियां हो सकती हैं। ई-सिगरेट का सेवन करने वाली महिलाओं में तो गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के श्वेत पत्र के मुताबिक जो लोग ई-सिगरेट या दूसरे इंड्स उत्पादों का सेवन करते हैं, आगे चलकर उन्हें नियमित तम्बाकू उत्पादों के सेवन के लत भी लग सकती है। बहरहाल, ई-सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इस बात की सख्त जरूरत है कि इस पाबंदी को असरकारक बनाने के लिए इसके निर्माताओं, आयातकों, वितरकों और विक्रेताओं पर शिकंजा कसा जाए ताकि ये उत्पाद आमजन तक पहुंच ही न सकें और देश की युवा पीढ़ी और मासूम बच्चों को ई-सिगरेट के जहर से बचाया जा सके।
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